हिंदी पर चर्चा

 आशीष के बारे में

आशीष रंजन वर्ष 2019 से काशी हिन्दू विश्विद्यालय हिंदी साहित्य से स्नातक कर रहे हैं। इनकी रुचि मूलतः साहित्य, दर्शन, मनोविज्ञान और समसायिक मुद्दों में है। इनके लेख लगातार कई पत्र पत्रिकाओं और अखबारों में प्रकाशित होते रहे हैं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हुए हिंदी सम्मेलन में इन्होंने बेहतरीन वक्ताओं के सूची में प्रथम पायदान मिला है। हिंदी दिवस के अवसर पर इनसे की गई पेश है एक वार्ता।।




हिंदी उपन्यासों की तुलना में भारत में अंग्रेजी उपन्यास अधिक लोकप्रिय क्यों हैं?

हिंदी भाषा और साहित्य में हजारों लाखों उपन्यास पड़े हुए हैं। कई उपन्यास अपने मूल प्रकृति और विविध आयामों को समेटने के कारण पाठकों के बीच बेहद लोकप्रिय भी है परंतु फिर भी बहुसंख्यक पाठकों का यहां अभाव है तथा इससे ज्यादा अंग्रेजी उपन्यास लोकप्रिय हैं। इसका मूल कारण यह है कि हिंदी एक बहुराष्ट्रीय भाषा न होकर एक खास देश तथा कुछेक और देश तक ही सीमित है जबकि अंग्रेजी का पूरे विश्व में लिखी तथा पढ़ी जाती रही है। आजकल के हिंदी लेखकों के बहुत सारे किताबें पब्लिशर्स द्वारा प्रकाशित ही नहीं की जाती हैं।
इसके अतिरिक्त एक और मूल कारण यह है कि हमारे यहां हमलोगों की अंग्रेजी के प्रति रुझान दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। स्कूल, कॉलेज, सेवा संस्थाओं आदि में बहुतेरे कार्य अंग्रेजी में होने लगे हैं जिससे हिंदी की अलोकप्रियता बढ़ती जा रही है और इसके साथ ही हिंदी उपन्यासों के पाठकों की भी कमी देखने को मिलती  हैं।।

ऐसी कौन सी किताब है जिसने आपके सोचने के तरीके को एक खास तरीके से बदल दिया है और कैसे?

हिंदी की थोड़ी बहुत किताबें मैंने पढ़ रखी हैं। हरेक किताब के अपने मायने अपनी विशेषता होती हैं। किताबें अपने साथ कुछ ऐसे अभूतपूर्व चीजें लाती हैं जो हमें वैयक्तिक, नैतिक, आत्मिक तथा सामाजिक तौर पर पूरी तरह बदल कर रख देती है।

राही मासूम रज़ा की पुस्तक "आधा गाँव " ने मेरी वैचारिक स्थिति को एक झटके में परिवर्तित कर के रख दिया था। धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक उपलाम्भों पर आधारित यह उपन्यास हमें हिन्दू _मुसलमानों के द्वंद्वों से निकलकर एक कायदे का इंसान बनाना सिखाती है।
आज के भारतीय परिवेश में यह पुस्तक निश्चित तौर पे पढ़ी जानी चाहिए।।

क्या आप हमारे पाठकों को कुछ फिक्शन और नॉन फिक्शन किताबों की सिफारिश कर सकते हैं?

पाठकों से मेरा सबसे पहले अनुरोध ये है कि वे हिंदी पढ़ने की शुरुआत प्रेमचंद के कहानियों तथा उपन्यासों से करें जो कि हिंदी किताबों को पढ़ने की बुनियादी शर्त है। इससे आपकी हिंदी के प्रति एक नैतिक जवाबदेही तथा समझ बनेगी।
फिक्शन पुस्तकों में मेरा मानना है कि _मैला आँचल, गुनाहों का देवता, महाभोज, शेखर एक जीवनी, गोदान आदि पढ़ी जानी चाहिए।
नॉन फिक्शन में विवेकानंद की जीवनी,  दर्शन_दिग्दर्शन, मैं मृत्यु सिखाता हूँ, उसने गांधी को क्यों मारा, अग्नि की उड़ान पढ़ी जा सकती है।।


हिन्दी साहित्य का आपका पसंदीदा पहलू जो आपको अंग्रेजी साहित्य में नहीं मिलता?

साहित्य किसी भी भाषा का क्यों न हो उसके अलग अलग पहलू ही उसे श्रेष्ठ बनाते हैं। हरेक साहित्य के कुछ न कुछ विषय, पहलुएँ उसे अपने समकालीन साहित्यों से भिन्न बनाता है।
हिंदी साहित्य के पारंपरिक धारा भक्तिकाल के आयाम मुझे अंग्रेजी साहित्य से भिन्न दिखता है। इसमें उन सारे पहलुओं का समावेशन है जो न सिर्फ अंग्रेजी साहित्य बल्कि विश्व के किसी भी भाषा के साहित्य में नहीं दिखता है।
भक्तिकाल के सारे लेखक रूढ़िवादिता, आडंबर, और ब्राम्हणवादी विचारधारा से त्रस्त होकर लेखन कर रहे थे तथा समाज को एक नई दिशा और दशा प्रदान करने का काम कर रहे थें। कबीर हों, तुलसी हो या फिर सूर ही क्यों न हो इन्होंने अपने लेखनी से समाज के मानदंड तय कर दिए थे और इनके बाद से ही एक वयापक चिंतन का आरंभ भारतीय सभ्यता और संस्कृति में हुआ।
इस काल के लेखकों का दार्शनिक आधार भी काफी विस्तृत और वयापक था।अद्वैतवाद, नव्यवेदांत, वेदांत को मानने वाले लोग थे ये। इनके साहित्य में ब्रम्ह की परिकल्पना की जाती थी। अंग्रेजी साहित्य में ये सारे पहलू दूर दूर तक नज़र नहीं आते हैं।।

क्या आप हिंदी को समृद्ध और सुंदर भाषा मानते हैं?  यदि हाँ, तो क्यों?

किसी भी भाषा के अपनी व्यपकता तथा सीमाएं होती हैं।हिंदी अपने आप में एक समृद्ध, सुंदर और परिष्कृत भाषा है। इस भाषा का इतिहास 1500 साल पुराना है। इसमें साहित्य, कथा आदि के भंडार पड़े हैं। भारत के जनसंख्या के लगभग 60% लोगों के बीच यह भाषा बोली तथा लिखी जाती है। इसके वर्तनी में मूलतः कोई भी समस्या नहीं है। इसकी व्यकरण की शुद्धता, शब्दकोश की पूर्णता, साहित्यिक कलाकारी की पूर्णतः अभिव्यक्ति इसे एक समृद्ध तथा सुंदर भाषा बनाती है।

हिंदी दिवस पर आपके क्या विचार हैं?  इसे क्यों और कैसे मनाया जाना चाहिए?

आजकल के इस भाषायी निष्क्रियता के  दौर में हिंदी दिवस मानों एक वर्षी की तरह हो गयी है जो अनवरत हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी लग रहा है हिंदी के पुण्यतिथि के रूप में मनाई जा रही है।।

आज हमारी हिंदी घुटने के बल औंधे मुंह ठिठुर रही है और हम निश्चिन्त अंग्रेजी की चादर तान सोए रहे हैं।अपराधबोध, आत्मनिर्वासन का हमें तनिक भी बोध नहीं है। हम हिंदी के पतन और अंग्रेजी की तुस्टीकरण के रुप में जिंदगी जी रहे हैं। हालांकि कोई भाषा गलत नहीं होती बस उसकी अतिव्याप्ति और लोगों का बेतार्किक रुप से उसके प्रति सम्मोहन गलत होता है।।
यूँ कोई एक दिन सोए से जाग अपनी धूल झाड़ हिंदी दिवस का स्वांग रचना कतई सही नहीं है ।
हिंदी दिवस हमें हरेक दिन मनाना है फिर जाकर कहीं हमारी हिंदी इस घूप अंधेरे से निकल पाएगी जहां ये वर्षों से फंसी हुई है।

जयशंकर प्रसाद, पंत, मुक्तिबोध, नागार्जुन आदि को निरंतर पढ़ा जाना चाहिए। प्रेमचंद, अज्ञेय, रेणु, मोहन राकेश की कृतियों का अध्ययन उसका वयापक प्रचार प्रसार तथा नए लेखकों का सम्मान होने के उपरांत ही हिंदी दिवस सही मायने में हिंदी की आत्मरक्षा में सहयोग कर पाएगा।।

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2 Comments

  1. बहुत सुंदर।
    अपने गौरव में चार चांद लगाते रहिए🥰🥰

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  2. Very well said Aasish bhaiya.
    Proud of you, keep it up and all the best for ur future.
    #जय_हिंदी
    #जय_हिंदुस्तान 🇮🇳

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